अयोंध्या में राम जी के बारात की तैयारी
अयोंध्या में राम जी के बारात की तैयारी ,जनकपुर से आये दूत से जब राजा दशरथ अपने दोनो पुत्रों का हाल चाल लेने लगें –
“स्यामल गौर धरें धनु भाथा , बय किसोर कौसिक मनि साथा ।
पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ , प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ ।।”
साँवले और गोरे शरीर वाले वे धनुष और तरकस धारण किये कहते हैं,
किशोर अवस्था है, विश्वामित्र मुनि के साथ हैं।
तुम उनको पहचानते हो ।
तब दूत ने कहा –
“सुलहु महीपति मुकुट मनि , तुम्ह सम धन्य न कोउ ।
रामु लखनु जिन्ह के तनय, बिस्व बिभूषन दोउ ।।”
हे राजाओं के मुकुटमणि – सुनियें , आपके समान धन्य और कोई नहीं है, जिनके राम – लक्ष्मण जैसे पुत्र है ,
जो दोनो विश्व के विभूषण हैं।
“तहाँ राम रघुबंसमनि ,सुनिअ महा महिपाल ।
भंजेउ चाप प्रयास बिनु, जिमि गज पंकज नाल ।।”
हे महाराज ,सुनिये , जहाँ ऐसे -ऐसे योध्दा हार मान गये रधुवंशमणि श्रीरामचन्द्रजी ने
बिना ही प्रयास शिवजी के धनुष को वैसे ही तोड़ डाला जैसे हाथी कमल की डंडी को तोड़ डालता हैं।
दुत की बाते सुनकर सभासहित राजा प्रेम में मग्न हो गये और दूतों को निछावर देने लगें ।
तब राजा उठकर वसिष्ठ जी के पास जाकर उन्हे पत्रिका दीऔर आदरपूर्वक दूतों को बुलाकर सारी कथा गुरूजी को सुना दी ।
सब समाचार सुनकर और अत्यंत सुख पाकर गुरु बोले – पुण्यात्मा पुरुष के लिए पृथ्वी सुखों से छायी हुई है।
तुम जैसे गुरु, ब्राह्मण, गाय और देवता की सेवा करने वाले हो, वैसे ही पवित्र कौशल्या देवी भी हैं।
हे राजन् तुमसे अधिक पुण्य और किसका होगा, जिसके राम सरीखे पुत्र हैं।
तुम्हारे लिए सभी कालों में कल्याण हो अतएव डंका बजवाकर बारात सजवाओ।
गुरु के ऐसे वचन सुनकर राजा दशरथ बोले- हे नाथ बहुत अच्छा और सिर नवाकर तथा दूतों को डेरा दिलवाकर राजा महल में गये।
राजा ने सारे रनिवास को बुलवाकर जनक जी की पत्रिका बांचकर सुनाई।
समाचार सुनकर सब रानियां हर्ष से भर गयी। उस अत्यंत प्रिय पत्रिका को आपस में लेकर सब हृदयँ से लगाकर छाती शीतल करती हैं।
यह सब मुनि की कृपा है ऐसा कहकर राजा दशरथ बाहर चले आए।
तब रानियों ने ब्राहम्णों को बुलाकर आनंद सहित उन्हें दान दिया।
श्रेष्ठ ब्राह्मण आशीर्वाद देते हुए चले गए।
“भुवन चारि दस भरा उछाहु ,जनक सुता रघुबीर बिआहू।
सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे, मग गृह गलीं सवाँरन लागे।।”
चौदहों लोकों मे उतसाह भर गया की जानकी जी और रघुनाथ जी का विवाह होगा।
यह शुभ समाचार पाकर लोग प्रेम मग्न हो गए और रास्ते , घर तथा गलियां सजाने लगे।
यद्दपि अयोध्या सदा सुहावनी है, क्योंकि वह श्रीराम जी की मंगलमयी पवित्र पुरी है, तथापि प्रीति पर प्रीति होने से वह सुन्दर मंगल रचना से सजायी गयी है।
लोगों ने अपने अपने घर को सजाकर मंगलमय बना लिया।
स्त्रियां मनोहर वाणी से मंगल गीत गा रही हैं। बहुत से नगाड़े बज रहे हैं।
भरत जी ने सुन्दर घोड़ों को सजाने की आज्ञा दी। सारथियों ने ध्वजा, पताका, मणि, आभूषणों को लगाकर रथों को बहुत विलक्षण बना दिया।
उनमें सुन्दर चाँवर लगे हैं और घंटियां सुन्दर शब्द कह रही हैं।
“चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर ,नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुंदर सबहि, जो जेहि कारज जात।।”
रथों पर चढ़-चढ़कर बारात नगर के बाहर जुटने लगी। जो जिस काम के लिए जाता है, सभी को सुन्दर सगुन दिये जाते ।
मतवाले हाथी घंटों से सुशोभित होकर घंटे बजाते हुए चले।
मानो सावन के सुन्दर बादलों के समूह गरजते हुए जा रहे हों सुन्दर पालकियां , सुख से बैठने योग्य तामजान और रथ आदि और भी अनेकों प्रकार की सवारियां हैं।
उन पर श्रेष्ठ ब्राह्मणों के समूह चढ़कर चले। मानो सब वेदों के छंद ही शरीर धारण किये हुए हों।
सबके हृदय में अपार हर्ष है और शरीर पुलक से भरे हैं।
राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भीड़ हो गयी है कि वहाँ पत्थर फेंका जाए तो वह भी पिसकर धूल हो जाए।
“गावहिं गीत मनोहर नाना ,अति आनंदु न जाइ बखाना ।`
तब सुमंत्र दुइ स्यंदन साजी ,जोते रबि हय निंदक बाजी।।”
स्त्रियां नाना प्रकार के मनोहर गीत गा रही हैं। उनके अत्यंत आनंद का बखान नही हो सकता।
तब सुमंत्र जी ने दो रथ सजाकर उनमें सूर्य के घोड़ों को भी मात देने वाले घोड़े जोते।
उस सुन्दर रथ पर राजा वशिष्ठ जी को हर्ष पूर्वक चढ़ाकर फिर स्वयं शिव, गौरी और गणेश जी का स्मरण करके दूसरे रथ पर चढ़े ।
“सुमिरि रामु गुर आयसु पाई ,चले महीपति संख बजाई।
हरषे बिबुध बिलोकि बराता ,बरषहिं सुमन सुमंगल दाता।।”
श्री राम चन्द्र जी का स्मरण करके, गुरु की आज्ञा पाकर पृथ्वी पति दशरथ जी संख बजाकर चले ।
बारात देखकर देवता हर्षित हुए और सुन्दर मंगलदायक फूलों की वर्षा करने लगे।
बड़ा शोर मच गया, घोड़े और हाथी गरजने लगे। आकाश में और बारात में दोनो जगह बाजे बजने लगे।
देवांगनाएं और मनुष्यों की स्त्रियां सुन्दर मंगलगान करने लगी और रसीले राग से सहनाइयां बजने लगी।
“घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं, सरव करहिं पाइक फहराहीं।
करहिं बिदूषक कौतुक नाना ,हास कुसल कल गान सुजाना।।”
“||जय श्री सीता राम ||”
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