गणेश चतुर्थी पूजा विधि : महत्व- 
गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर उनसे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य की कामना की जाती है। यह त्योहार विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और गोवा में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन आजकल पूरे भारत में इसे उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि: स्नान और स्वच्छता:
- पूजा करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। पूजा का स्थान साफ करें। गणेश प्रतिमा स्थापना: पूजा स्थल पर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मूर्ति को लाल या पीले वस्त्र में बैठाएं। मूर्ति के पास हल्दी-कुंकुम, फूल, दूर्वा (घास), लड्डू और मोदक रखें, क्योंकि यह गणेशजी को प्रिय होते हैं।
- पूजन सामग्री: पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) तिलक के लिए कुमकुम, चंदन, हल्दी पुष्प, दूर्वा लड्डू और मोदक धूप, दीप और अगरबत्ती नारियल, पान.
- सुपारी ध्यान और आह्वान: सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनका आह्वान करें। भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपकी पूजा स्वीकार करें।
- तिलक और पुष्प अर्पण: भगवान गणेश की मूर्ति पर चंदन, हल्दी और कुमकुम से तिलक करें। उनके चरणों में पुष्प, दूर्वा अर्पित करें।
- धूप-दीप दिखाना: भगवान गणेश को धूप और दीप दिखाएं। यह पूजा का प्रमुख अंग होता है।
- मंत्र जाप: “ॐ गं गणपतये नमः” या “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ” मंत्र का जाप करें।
- प्रसाद चढ़ाना: भगवान गणेश को मोदक, लड्डू और अन्य मिठाई अर्पित करें।
- आरती: गणेशजी की आरती गाएं|
- “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा |माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥एकदन्त, दयावन्त, चार भुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी॥जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥अन्धन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डू चढ़े, संत कृपा करो भक्तन के सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥“
आरती के बाद प्रार्थना: जो कोई गणेश जी की आरती गाता, सफलता अपनी पाता। दुख दारिद्र दूर हो जाता, सुख संपत्ति घर आता॥
- आरती करने के बाद गणेश जी से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
- गणेश चतुर्थी या किसी भी शुभ अवसर पर गणेश जी की आरती गाई जाती है। यहां पर प्रसिद्ध आरती दी गई है:
- प्रसाद वितरण:
- पूजा के बाद सभी को प्रसाद बांटें और गणेशजी की कृपा की कामना करें।
- गणेश चतुर्थी का महत्व:विघ्नहर्ता: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, यानी सभी बाधाओं को दूर करने वाले देवता। इस दिन उनकी पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं।बुद्धि और विवेक: गणेशजी को बुद्धि और ज्ञान के देवता माना जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को सही दिशा और विवेक प्राप्त होता है।
- सफलता का प्रतीक: गणेशजी को शुभारंभ के देवता भी कहा जाता है। किसी भी नए कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से की जाती है, ताकि कार्य में सफलता और समृद्धि प्राप्त हो।
- सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व: गणेश चतुर्थी सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह लोगों को एकजुट करता है और समाज में आपसी सहयोग और सद्भाव का संदेश देता है।
गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करके व्यक्ति समृद्धि, शांति और सफलता की कामना करता है।
गणेश चतुर्थी के साथ भगवान गणेश की कई कथाएं जुड़ी हुई हैं, जिनमें उनकी उत्पत्ति और उनके विशेष गुणों का वर्णन किया गया है। उनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा उनकी उत्पत्ति से संबंधित है, जो इस प्रकार है:
भगवान गणेश की उत्पत्ति की कथा:
एक समय की बात है, देवी पार्वती, जो भगवान शिव की पत्नी थीं, ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया।
उन्होंने उस बालक में जीवन डालकर उसे अपना पुत्र बना लिया। ज
ब पार्वती जी स्नान करने चली गईं, तो उन्होंने गणेश को दरवाजे पर खड़ा कर दिया और उसे आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे।
कुछ समय बाद भगवान शिव वहां आए और अंदर जाने लगे। लेकिन गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि वह अपनी माता के आदेश का पालन कर रहे थे।
भगवान शिव को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि यह बालक कौन है जो उन्हें उनके ही घर में प्रवेश नहीं करने दे रहा है।
भगवान शिव ने कई बार गणेश को समझाने की कोशिश की, लेकिन गणेश अपने स्थान से नहीं हिले।
यह देखकर शिवजी बहुत क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया।
जब देवी पार्वती ने यह देखा तो वह अत्यंत दुखी हो गईं और रोने लगीं। उन्होंने भगवान शिव से अपने पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना की।
पार्वती जी का दुख देखकर भगवान शिव को बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने गणेश जी के शरीर में जीवन डालने का वचन दिया, लेकिन किसी अन्य प्राणी का सिर लाकर गणेश के शरीर से जोड़ना पड़ा।
भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर जाएं और जो भी पहला जीव सोते हुए मिले, उसका सिर लेकर आएं।
गणराज शिव के गणों ने सबसे पहले एक हाथी को सोता हुआ पाया और उसका सिर लेकर शिवजी के पास आए।
भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश के शरीर से जोड़ दिया और इस तरह गणेश का पुनर्जन्म हुआ।
तभी से भगवान गणेश को हाथी के सिर वाला देवता माना जाता है।
गणेश जी को दिया गया वरदान:
भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि वह हमेशा पूजनीय रहेंगे और उनकी पूजा सबसे पहले होगी।
किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाएगी। उन्हें “विघ्नहर्ता” यानी सभी बाधाओं को दूर करने वाला देवता घोषित किया गया।
इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का यह पर्व भगवान गणेश के जन्म और उनकी अद्वितीय शक्तियों की स्मृति में मनाया जाता है।
यह दिन यह सिखाता है कि बुद्धिमानी, विवेक और कर्तव्य पालन से हर समस्या का समाधान संभव है।
“वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
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