राम जी का नामकरण संस्कार
“कछुक दिवस बिते एही भाँति , जात न जानिअ दिन अरु राती।
नामकरण कर अवसर जानी , भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी “।।
राजा दशरथ तथा माताओं का समय ऐसे बिता की दिन और रात का पता ही नहीं चला और भगवान श्री राम के नामकरण संस्कार का समय आ गया है।
महाराज दशरथ ने नामकरण संस्कार के लिए गुरु वशिष्ठ जी को आमंत्रण भेजा ।
गुरु जी आये । गुरु जी को ऊँचा स्थान दिया गया तथा नीचे चार स्थान लगाये गयें , जिस पर दशरथ जी , माता कौसल्या , कैकेयी तथा सुमित्रा जी बैठे ।
आज गुरु वशिष्ठ जी को अपने भाग्य पर गर्व हो रहा है , उनकी आँखो में आँसू भर आये है ।
उन्हे उनके पिता ब्राम्हा जी द्वारा कही गयी एक बात याद आ गयी ।
जिस समय ब्रह्मा जी ने मुझे प्रकट किया था , उस समय ये आज्ञा दी थी ,कि तुम सूर्य वंश के पुरोहित बन जाओ ।
तब उस समय वशिष्ठ जी ने यह कह कर मना कर दिया था कि मुझे यह कार्य अच्छा नही लगता ।
तब ब्रह्मा जी ने उन्हे समझाया कि यदि तुम पुरोहित बन गये तो भगवान विष्णु ,श्री राम बन कर इस वंश में जन्म लेगें और तुम्हें उनको गोदीं में खिलाने का मौका मिलेगा ।
तब वशिष्ठ जी ने स्वीकार किया ।
बस यही बात याद करके वशिष्ठ जी प्रसन्न हो रहे है ।
गुरु जी कहते है –
इह के नाम अनेक अनुपा । मैं नृप कहब स्वमति अनुरुपा ।।
अर्थात इनके नाम तो अनेक है फिर भी मेरी बुध्दि में जो आ रहा है वो आप को बता रहा हूँ ।
जो आनन्द सिन्धु सुखरासी,सीकर ते त्रैलोक सुपासी ।।
सो सुख धाम राम अस नामा ,अखिल लोक दायक विश्रामा ।।
अर्थात ये जो आनन्द के समुद्र और सुख की राशि है, जिस के एक कण से तीनों लोक सुखी होते है,उनका नाम राम है ।
(राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र) जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शान्ति देने वाला है ।
वशिष्ठ के अनुसार राम शब्द दो बीजाक्षरों अग्नि बीज और अमृत बीज से मिलकर बना है।
ये अक्षर दिमाग, शरीर और आत्मा को शक्ति प्रदान करते हैं।
भरत , शत्रुघन और लक्ष्मण नामकरण –
गुरु वशिष्ठ जी कह रहे हैं –
बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥
(जो संसार का भरण-पोषण करते हैं, उन (आपके दूसरे पुत्र) का नाम ‘भरत’ होगा।)
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥
(जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध ‘शत्रुघ्न’ नाम है।)
लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार ।
गुरु बशिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार ।।
जो शुभ लक्षणों के धाम , श्री राम जी के प्यारे और सारे जगत के आधार है, गुरु बशिष्ठ जी ने उनका लक्ष्मण ऐसा श्रेष्ठ नाम रखा है ।
धरे नाम गुर ह्र्रदयँ बिचारी । वेद तत्व नृप तव सुत चारी ।।
मुनि धन जन सरबस सिव प्राना । बाल केलि रस तेहिं सुख नामा ।।
गुरु ने हृदय में विचार कर ये नाम रखे और कहा – हे राजन! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्त्व साक्षात परात्पर भगवान हैं।
जो मुनियों के धन, भक्तों के सर्वस्व और शिव के प्राण हैं, उन्होंने इस समय आप लोगों के प्रेमवश में बाल लीला करने को ही अपना सुख माना है।
इस प्रकार गुरु देव वशिष्ठ जी ने चारों बालको का सुंदर नामकरण किया है ।
बचपन से ही माताएँ दोनो सुदंर जोड़ियों राम -लक्ष्मण , भरत -शत्रुघ्न के आपस के प्रेम और बाल लीलाओं को देखकर माताएँ बार – बार नजर उतारती रहती है ।
माताएँ कहती हैकि ऐ चारों ही पुत्र शील ,धाम और गुण के धाम है ।
लेकिन तीनों भाईयों में श्रीराम जी सुख के सागर है । राम जी के मन में कृपा रुपी चन्द्रमा प्रकाशित है ।
उनकी हँसी मन को हरने वाली है । माताएँ कभी गोद में तथा कभी पालने लिटाकर प्यार दुलार करती है ।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद ।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद ।।
जो सर्वव्यापक , निरंजन , निर्गुण , विनोदरहित और अजन्में ब्रह्म हैं, वही प्रेम और भक्ति के वश कौसल्या जी की गोद में खेल रहे हैं।
सुंदर कान और बहुत ही सुंदर गाल हैं। मधुर तोतले शब्द बहुत ही प्यारे लगते हैं।
जन्म के समय से रखे हुए चिकने और घुँघराले बाल हैं, जिनको माता ने बहुत प्रकार से बनाकर सँवार दिया है।
सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत ।
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत ।।
जो सुख के पुज्य, मोहसे परे तथा ,ज्ञान ,वाणी और इन्द्रियों से अतीत हैं ,
वे भगवान दशरथ – कौशल्या के अत्यन्त प्रेम के वश होकर पवित्र बाललीला करते है ।
इस प्रकार जगत् के माता-पिता श्री राम जी अवधपुर के निवासियों को सुख देते हैं।
जिन्होने श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में प्रीति जोड़ी है, हे भवानी ! उनकी यह प्रत्यक्ष गति है
कि भगवान् उनके प्रेमवश बाललीला करके उन्हे आनंद दे रहे है ।
राम , लक्ष्मण, भरत ,शत्रुघन की जय ।।
।।जय श्री सीता राम।।
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