राम तथा लक्ष्मण जी का पुष्प वाटिका भ्रमण , माता सीता से प्रथम मिलन

राम तथा लक्ष्मण जी का पुष्प वाटिका भ्रमण , माता सीता से प्रथम मिलन

 

“उठे लखनु निसि बिगत, सुनि अरुनसिखा धुनि कान।राम और लक्ष्मण

गुरु तें पहिलेहिं जगतपति , जागे रासु सुजान।।”

रात बीतने पर मुर्गे की बांग सुनकर लक्ष्मण जी उठे तथा जगत के स्वामी सुजान श्रीरामचन्द्र जी भी गुरु जी से पहले उठ गये। नित्य क्रिया करके उन्होंने मुनियों को प्रणाम किया तथा गुरु की आज्ञा पाकर दोनो भाई फूल लेने चले गये। उन्होंने जाकर राजा का सुन्दर बाग देखा, जहाँ बसंत ऋतु लुभा रही थी। मन को लुभाने वाले अनेक वृक्ष लगे हैं, पपीहे, कोयल, तोते, चकोर तथा आदि पक्षी मीठी बोली बोल रहे हैं और मोर सुन्दर नृत्य कर रहे हैं । बाग के बीचो – बीच सुहावना सरोवर सुशोभित है जिसमें मणियों की सीढ़ीयाँ विचित्र ढ़ंग से बनी हैं। उसका जल निर्मल है, जिसमें अनेक रंगों के कमल खिले हुए हैं, जल के पक्षी कलरव कर रहे हैं और भ्रमर गुंजार कर रहे हैं।

“बागु तड़ागु बिलोकि , प्रभु हरषे बंधु समेत।

परम रम्य आरामु यहु ,जो रामहि सुख देत।।”

बाग और सरोवर को देखकर प्रभु श्रीरामचन्द्र जी अपने भाई लक्ष्मण जी के साथ बहुत ही खुश हो रहे हैं। यह बाग वास्तव में परम रमणीय है जो जगत को सुख देने वाले श्रीरामचन्द्र जी को सुख दे रहा है।

“चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन, लगे लेन दल फूल मुदित मन।

तेहि अवसर सीता तहँ आई ,गिरिजा पूजन जननि पठाई।।”

चारो ओर दृष्टि डालकर और मालियों से पूछकर वे प्रसन्न मन से पत्र पुष्प लेने लगे। उसी समय सीता जी वहां आई माता ने उन्हें गिरिजा (पार्वती) जी की पूजा करने के लिए भेजा था।

“संग सखी सब सुभग सयानीं , गावहिं गीत मनोहर बानी।

सर समीप गिरिजा गृह सोहा, बरनि न जाइ देखि मनु मोहा।।”download (14)

साथ में सब सुन्दर और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। सरोवर के पास गिरिजा जी का मन्दिर सुशोभित है। जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता तथा जिसे देखकर मन मोहित हो जाता है। सखियों के साथ सरोवर में स्नान करके सीता जी प्रसन्न मन से गिरिजा जी के मन्दिर में गयीं। उन्होंने बड़े प्रेम से पूजा की और अपने योग्य सुन्दर वर माँगा।

“एक सखी सिय संगु बिहाई, गई रही देखन फुलवाई।

तेहिं दोउ बंधु बिलोके जाई, प्रेम बिबस सीता पहिं आई।।”

एक सखी सीता जी का साथ छोड़कर फुलवाड़ी देखने चली गई थी उसने जाकर दोनो भाइयों को देखा और प्रेम में बिहल होकर वह सीता जी के पास आई। उसने अपनी सखियों तथा सीता जी को बताया कि दो राजकुमार बाग देखने आयें और किशोर अवस्था के हैं और सब प्रकार से सुन्दर हैं वे सांवले और गोरे रंग के हैं उनके सौन्दर्य का बखान मैं कैसे कहूँ।

“सुनि हरषीं सब सखीं सयानी, सिय हियँ अति उतकंठा जानी।

एक कहइ नृपसुत तेइ आली ,सुने जे मुनि सँग आए काली।। “

यह सुनकर सीता जी के हृदयँ बड़ी उत्कंठा जानकर सब सयानी सखियाँ प्रसन्न हुई तब एक सखी कहने लगी- हे सखी ! ये वही राजकुमार हैं जो कल विश्वामित्र जी के साथ आए हैं और जिन्होंने अपने रूप की मोहिनी डालकर नगर के स्त्री पुरुषों को अपने वश में कर लिया है। उनके वचन सीता जी को अत्यन्त ही प्रिय लगे और दर्शन के लिए उनके नेत्र अकुला उठे । उसी प्यारी सखी को आगे करके सीता जी चली।

“कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि, कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि ।

मानहु मदन दुदुंभी दीन्ही मनसा, बिस्व बिजय कहँ कीन्ही।।”

हाथों में कड़े, कर्धनी और पायजेब के शब्द सुनकर श्रीरामचन्द्र जी हृदयँ में विचार करकर लक्ष्मण से कहते हैं- यह ध्वनि ऐसी आ रही है कि मानो काम देव ने विश्व को जीतने का संकल्प करके डंके पर चोट मारी है।

“अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा, सिय मुख ससि भए नयन चकोरा।

भए बिलोचन चारु अचंचल, मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल।।”

ऐसा कहकर श्री रामचन्द्र जी ने सीता जी की ओर देखा। श्री सीता जी मुख रूपी चन्द्रमा को निहारने के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए। सुन्दर नेत्र स्थिर हो गये । मानो निमि ( जनक जी के पूर्वज) ने ( जिनका सबकी पलकों में निवास माना गया है , लड़की दामाद के मिलन प्रसंग को देखना उचित नही, इस भाव से) सकुचा कर पलकें छोड़ दी। सीता जी की शोभा देखकर श्रीराम जी ने बड़ा सुख पाया उनके मुख से वचन नहीं निकलते । ऐसी शोभा है कि मानों ब्रह्मा ने अपनी सारी निपुणता को मूर्तिमान कर संसार को प्रकट कर के दिखा दिया हो।

“सिय सोभा हियँ बरनि ,प्रभु आपनि दसा बिचारि।

बोले सुचि मन अनुज ,सन बचन समय अनुहारि।।”

हृदयँ में सीता जी की शोभा का वर्णन करके और अपनी दशा को विचारकर के प्रभु श्रीरामचन्द्र जी पवित्र मन से अपने छोटे भाई लक्ष्मण से बोले, हे तात! यह वही जनक की कन्या है जिनके लिए धनुष यज्ञ हो रहा है। सखियाँ इन्हें गौरी पूजन के लिए ले आई हैं। जिसकी अलौकिक सुन्दरता देखकर स्वभाव से ही पवित्र मेरा मन क्षुब्ध हो गया है। यह सब किस कारण हो रहा है विधाता जाने किन्तु हे भाई मेरे मंगलदायक (दाहिने) अंग फड़क रहे हैं।

                                                                               ||जय श्री सीता राम ||                                                                                                                                       

                                                                                                                                                                            nameste

2 thoughts on “राम तथा लक्ष्मण जी का पुष्प वाटिका भ्रमण , माता सीता से प्रथम मिलन”

  1. सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥

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