राजसभा में श्रीराम जी के यश और सुन्दरता का बखान

राज्य सभा में श्रीराम जी के यश और सुन्दरता का बखान


श्रीराम जी

राज्य सभा में श्रीराम जी के यश और सुन्दरता का बखान

श्रीराम चन्द्र जी अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी और गुरु वशिष्ठ जी के साथ राजा दशरथ जी के धनुषशाला में पहुँचते है ।

जहाँ पर भगवान परशुराम जी का दिव्य धनुष रखा हुआ है ।

महाराज जनक जी की शर्त के अनुसार जो भगवान परशुराम जी के धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा ,

उसी से सीता जी का विवाह होगा ।

राम जी जैसे ही स्वंवर में पहुँचते है , सभी लोग उन्हे देखते ही रह जाते है-

” प्रभुहि देखि सब नृप हियँ हारे , जनु राकेस उदय भयँ तारे ।

असि प्रतीति सब के मन माहीं , राम चाप तोरब सक नाहीं  ।। ” 

प्रभु को देखकर सब राजा ह्रदय में ऐसे हार गये जैसे पूर्ण चन्द्रमा के उदय होने पर तारे प्रकाश हीन हो जाते है।

सबके मन में ऐसा विश्वास हो गया कि राम चन्द्र जी धनुष को तोड़ेगे , इसमें संदेह नहीं है ।

“बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला , मेलिहि सीय राम उर माला ।

अस बिचारि गवनहु घर भाई , जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई  ।।”

राम जी के रुप को देखकर सबके मन में यह निश्चय हो गया कि शिवजी के विशाल धनुष को जो सम्भव है न टूट सकेगा ,

बिना तोड़े भी सीता जी श्रीराम चन्द्रजी के ही गले में जयमाला डालेंगी अर्थात दोनों ही तरफ से हमारी हार होगी और

विजय श्रीराम चन्द्रजी के हाथ रहेगी ।

यों सोचकर वे कहने लगे – हे भाई – ऐसा विचारकर यश , प्रताप , बल और तेज गवाकर अपने – अपने घर चलो ।

बिना धनुष को उठाएँ ही सभी राजाओं ने हार मान ली ।

” बिहसे अपर भूप सुनि बानी , जे अबिबेक अंध अभिमानी ।

तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा ,बिनु तोरें को कुअँरि बिआरा  ।।”

दूसरे राजा , जो अविवेक से अंधे हो रहे थे और अभिमानी थे , यह  बात सुनकर बहुत हँसे ।

उन्होने कहा – धनुष तोड़ने पर भी विवाह होना कठिन है ,अर्थात सहज ही में हम जानकी जी को हाथ से जाने नही देगें ।

फिर बिना तोड़े तो राजकुमारी को ब्याह ही कौन सकता है ।

जब तक धनुष टूटेगा नहीं तबतक तो राजा जनक जी की प्रतीज्ञा भी पूरी नहीं होगी ,

क्योकि जब तक धनुष टुटेगा नहीं तब तक सीता जी का विवाह नहीं होगा ।

 ” एक बार कालउ किन होऊ , सिय हित समर जितब हम सोऊ ।

यह सुनि अवर महिप मुसुकाने , धरमसील हरिभगत सयाने ।। “

घमण्ड़ी राजा  लोग आपस में बात करते है,  काल ही क्यों न हों , एक बार तो सीताजी के लिए उसे भी हम युध्द में जीत लेंगे ।

यह घमण्ड की बात सुनकर दूसरे राजा , जो धर्मात्मा , हरिभक्त और सयाने थे , घमण्ड़ी राजाओं  को देखकर  मुसकराने लगे ।

” सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के ।

जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे ।। “

उन्होंने कहा – राजाओं के गर्व दूर करके जो धनुष किसी से नहीं टूट सकेगा उसे तोड़कर श्रीराम चन्द्रजी सीताजी को ब्याहेंगे ।

रही युध्द की बात , सो महाराज दशरथ के रण में बाँके पुत्रों को युध्द में तो जीत ही कौन सकता है ।

” ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई , मन मोदकन्हि कि भूख बुताई ।

सिख हमारि सुनि परम पुनिता , जगदंबा जानहु जियँ सीता ।। “

गाल बजाकर व्यर्थ ही मत मरो । मन के लड्डुओं से भी कहीं भूख बुझती है ?

हमारी परम पवित्र सीख को सुनकर सीता जी को अपने जी में साक्षात जगज्जननी समझो ।

उन्हें पत्नी के रूप मे पाने की आशा एवं लालशा छोड़ दो ।

” जगत पिता रघुपतिहि बिचारी , भरि लोचन छबि लेहु निहारी।

सुंदर सुखद सकल गुन रासी  , ए दोउ बंधु संभु उर बासी ।। “

श्री रघुनाथ जी को जगत पिता परमेश्वर विचार कर, नेत्र भरकर उनकी छबि देख लो ऐसा अवसर बार बार नहीं मिलेगा।

सुंदर, सुख देने वाले और समस्त गुणों के राशि ये दोनों भाई शिव जी के हृदयँ में बसने वाले हैं।

स्वयं शिव जी भी जिन्हें सदा हृदयँ में छिपाये रखते हैं। वे तुम्हारे नेत्रों के सामने आ गये हैं।

” सुधा समुद्र समीप बिहाई, मृगजल निरखि मरहु कत धाई।

करहु जाइ जा कहुँ जोइ भावा, हम तौ आजु जनम फलु पावा ।। “

सभी राजा जन आपस में बात करते है कि समीप आये हुए अमृत के समुद्र को छोड़कर तुम जग जननी जानकी को पत्नी के रूप में पाने की दुराशा में मिथ्या क्यों मरते हो।

फिर जिसको जो अच्छा लगे वही जाकर करो। हमने तो आज जन्म लेने का फल पा लिया है।

जीवन और जन्म को सफल कर लिया है। प्रभु राम जी का दर्शन मात्र ही जीवन को सफल करने वाला है ।

” अस कहि भले भूप अनुरागे ,रूप अनूप बिलोकन लागे।

देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना ,बरषहिं सुमन करहिं कल गाना ।।  “

ऐसा कहकर अच्छे राजा प्रेम मग्न होकर श्री राम जी का अनुपम रूप देखने लगे।

मनुष्यों की तो बात ही क्या, देवता लोग भी आकाश में विमानों पर चढ़े हुए दर्शन कर रहे हैं

और सुंदर गान करते हुए फूल बरसा रहे हैंं।  देवता भी प्रभु के रुप और यश का गुणगान करते है ।

|| जय श्री सीता राम ||

श्रीराम जी

तुलसीदास जी ने रामराज्य की कल्पना करते हुए राजा के कुछ गुणों का वर्णन किया है| जैसे – धर्मशील होना , दानशील होना , प्रजापालक, स्वभाव का दृढ़ होना | श्री राम में आदर्श राजा के सभी गुण हैं|

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