श्री राम और लक्ष्मण जी नगर में धनुष यज्ञ भूमि देखने पहुंचते है

श्री राम और लक्ष्मण जी नगर में धनुष यज्ञ भूमि देखने पहुंचते है

 

“सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ।

चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ।।”

शतानंद जी के चरणों की वंदना करके प्रभु श्री राम जी गुरु जी के पास जाकर बैठे

तब मुनि ने कहा हे तात चलो जनक जी ने बुलावा भेजा है चलकर सीता जी के स्वयंवर को देखना चाहिए ।

देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं।

लक्ष्मण जी ने कहा जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा।

 

“हरषे मुनि सब सुनि बर बानी दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी।

पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला देखन चले धनुषमख साला। ।”

इस श्रेष्ठ वाणी को सुनकर सब मुनि प्रसन्न हुए सभी ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया।

फिर मुनियों के समूह सहित कृपालू श्रीरामचन्द्र जी धनुषशाला देखने चले ।

 

“हिय हरषहि वरषहि सुमन सुमुख सुलोचन बृन्द ।

जाहि जहाजहं वन्धु दोऊ तहं तहं परमानन्द ।।”

सुदंर मुखर सुदंर आंखो वाली महिलाएं समूह के  समूह आपस में मिलकर हर्षित होकर

श्री राम और लक्ष्मण जी पर फूलों की वर्षा कर रहे है , वहां पर परमआनंद छा जाता है ,

दोनो भाई नगर के पूरब की दिशा में गए ,जहां पर धनुष यज्ञ के लिए रंगभूमि बनाई गई थी

बहुत लंबा चौड़ा आंगन था जिस पर बहुत ही सुदंर वेदी सजाई गई थी ।

 

“चहुं दिशा कंचन मंच्च विशाला रचे जहां बैठहि महिपाल ।

तेहि पाछे समीप चहूं पासा अपर मंच मण्डली विलाशा ।।”

 

चारों ओर सोने के बड़े – बड़े मंच बने थे जिन पर राजा लोग बैठेंगे ,.

उनके पीछे समीप ही चारों ओर दूसरे मंचो का गोल गहरा सुशोभित था , जहां कुछ ऊंचा था

वहाँ नगर के लोग बैठेंगे उन्हीं के पास सफेद रंग के मकान बनाए गए हैं

जहाँ अपने अपने कुल के अनुसार महिलाएं बैठकर देखेंगी।

 

“राजकुँअर तेहि अवसर आए मनहुँ मनोहरता तन छाए।

गुन सागर नागर बर बीरा सुंदर स्यामल गौर सरीरा ।।”

 

उसी समय दोनो राजकुमार राम और लक्ष्मण वहाँ आए। मानो साक्षात मनोहरता ही उनके शरीर पर छा रही है।

सुन्दर सांवला और गोरा उनका शरीर है। वे गुणों के समुंद्र , चतुर और उत्तम वीर हैं।

 

“राज समाज विराजत रूरे उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे ।images (13)

जिन्ह कें रही भावना जैसी प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ।।”

 

वे राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो तारागणों के बीच दो पूर्ण चन्द्रमा हों।

जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही देखी।

महान रणधीर श्रीराम चन्द्र जी के रूप को ऐसा देख रहे हैं मानो स्वयं वीर रस शरीर धारण किए हुए हैं।

कुटिल राजा प्रभु को देखकर डर गये मानो बड़ी भयानक मूर्ति हो।

छल से जो राक्षस वहां राजा के वेष में बैठे थे उन्होंने प्रत्यक्ष काल के समान देखा।

नगर निवासियों ने दोनो भाइयों को मनुष्यों के भूषण रूप और नेत्रों को सुख देने वाला देखा।

विद्वानो को प्रभु विराट रूप में दिखाई दिये , जिनके बहुत से मुख , हाथ , पैर , नेत्र और सिर हैं।

हरि भक्तों ने दोनो भाइयों को सब सुखों को देने वाले इष्ट देव के समान देखा ।

सीता जी जिस भाव से श्रीराम चन्द्र जी को जिस भाव से देख रहीं हैं, वह स्नेह और सुख तो कहने में ही नहीं आता।

“राजत राज समाज महुँ कोसल राज किसोर ।

सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर ।।”

 

सुंदर सांवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्व भर के नेत्रों को चुराने वाले कोशलाधीश के अनुसार राज समाज में सुशोभित हो रहे हैं।

दोनों मूर्तियां स्वभाव से ही मन को हरने वाली हैं करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है।

उनके सुंदर मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा की भी निंदा करने वाले हैं और कमले के समान नेत्र मन को बहुत ही भाते हैं।

सुंदर गाल हैं , कानों में झूमते हुए कुंडल हैं , ठोडी और अधर सुंदर हैं, कोमल वाणी है।

 

“कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा भृकुटी बिकट मनोहर नासा ।

भाल बिसाल तिलक झलकाहीं कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं ।।”

 

हँसी चन्द्रमा की किरणों का तिरस्कार करने वाली है, भौहें टेढ़ी हैं और नासिका मनोहर है, चौड़े ललाट पर तिलक झलक रहे हैं

बालों को देखकर भौंरों की पंक्तियां भी लजा जाती हैं।

पीली चौकोनी टोपियाँ सिरों पर सुशोभित हैं संत के समान सुन्दर गले में मनोहर

तीन रेखाएं हैं जो मानो तीनों लोकों की सुन्दरता बता रही हैं। कमर में तरकस और पीतांबर बांधे हैं

दाहिने हाथ में बाण और बाएं सुन्दर कंधों पर धनुष और पीले यज्ञोपवीत सुशोभित है।

उन्हें देखकर सब लोग सुखी हैं। जनक जी दोनो भाइयों को देखकर हर्षित हुए तब उन्होंने जाकर मुनि के चरण कमल पकड़ लिए ।

 

“करि बिनती निज कथा सुनाई रंग अवनि सब मुनिहे देखाई ।

जहँ जहँ जाहिं कुअँर बर दोऊ तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ ।।”

 

जनक जी ने विनती करके अपनी कथा सुनाई और मुनि को सारी यज्ञशाला दिखलाई ।

मुनि के साथ दोनों श्रेष्ठ राजकुमार जहां जहाँ जाते हैं , वहाँ वहाँ सब कोई आश्चर्य चकित होकर उन्हें देखने लगते हैं।

 

“सब मंचन्ह तें मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल ।

मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल ।।”

 

सब मंचो से एक मंच अधिक सुंदर , उज्ज्वल और विशाल था। राजा ने मुनि सहित दोनो भाइयों को उस पर बैठाया।

||जय श्री सीता राम||

nameste

2 thoughts on “श्री राम और लक्ष्मण जी नगर में धनुष यज्ञ भूमि देखने पहुंचते है”

  1. Kirti dwivedi

    जिनकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी 🙏🙏

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