सीता जी का विवाह मण्डप में आगमन

सीता जी का विवाह मण्डप में आगमन सीता जी का विवाह मण्डप में आगमन

सीता जी सभी सखियों के साथ मण्डप में प्रवेश करती हैं सहज ही सुन्दरी सीता जी स्त्रियों के समूह में इस प्रकार शोभा पा रही हैं,

मानो छवि रूपी ललनाओं के समूह के बीच साक्षात परम मनोहर शोभा रूपी स्त्री सुशोभित हो ।

सभी ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया । देवता प्रणाम करके फूल बरसा रहे हैं ।

“एहि बिधि सीय मंडपहिं आई ,प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई। 

तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू, दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू।।”

इस प्रकार सीता जी मण्डप में आईं। मुनिराज बहुत ही आनंदित होकर शान्ति पाठ पढ़ रहे हैं उस अवसर की सब रीति , व्यवहार और कुलाचार दोनो कुलगुरुओं ने किये।

कुलाचार करके गुरु जी प्रसन्न होकर गौरी जी, गणेश जी और ब्राह्मणों की पूजा करा रहे हैं।

देवता प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते हैं, आशीर्वाद

देते हैं और अत्यंत सुख पा रहे हैं। स्वयं सूर्य देव प्रेम सहित अपने कुल की सब रीतियां बता देते हैं और वे सब आदर पूर्वक की जा रही हैं।

इस प्रकार दवताओं की पूजा करा के मुनियों ने सीता जी को सुन्दर सिंहासन दिया।

शुभ समय जानकर मुनियों ने सीता जी की माता सुनैना जी को बुलवाया ।

सुहागिन स्त्रियां उन्हें आदर पूर्वक ले आयीं ।

सुनैना जी जनक जी के बायीं ओर ऐसी सोह रही हैं मानो हिमाचल के साथ मैना जी शोभित हों।

 

“पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी गगन सुमन झरि अवसरु जानी।

बरु बिलोकि दंपति अनुरागे पाय पुनीत पखारन लागे।।”

मुनि मंगल वाणी से वेद पढ़ रहे हैं सुअवसर जानकर आकाश से फूलों की झड़ी लग गयी है।

दूलह को देखकर राजा-रानी प्रेम मग्न हो गये और उनके पवित्र चरणों को पखारने लगे।

जिनका स्पर्श पाकर गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या ने, जो पापमयी थीं, परम गति पायीं, जिन चरण कमलों का मकरन्दरस

शिव जी के मष्तक पर विराजमान है, जिसको देवता पवित्रता की सीमा बताते हैं,

मुनि और योगी जन अपने मन को भौंरा बनाकर जिन चरण कमलों का सेवन करके मनोवांछित गति प्राप्त करते हैं,

उन्हीं चरणों को भाग्य के पात्र जनक जी धो रहे हैं यह देखकर सब जय-जयकार कर रहे हैं।

“बर कुआँरि करतल जोरि, साखोचारु दोउ कुलगुर करैं।

भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि ,सुर मनुज मुनि आनँद भरैं।।

सुखमूल दूलह देखि दंपति, पुलक तन हुलस्यो हियो।

करि लोक बेद बिधानु ,कन्यादानु नृपभूषन कियो।।”

दोनो कुलों के गुरु वर और कन्या की हथेलियों को मिलाकर शाखोच्चार करने लगे।

पाणिग्रहण हुआ देखकर ब्रह्मादि देवता, मनुष्य और मुनि आनंद में भर गये।

सुख के मूल दुलह को देखकर राजा- रानी का शरीर पुलकित हो गया और हृदय आनन्द से उमंग उठा।

राजाओं के अलंकार स्वरूप महाराज जनक जी ने लोक और वेद की रीति को करके कन्यादान किया।

जैसे हिमवान ने शिवजी को पार्वतीजी और सागर ने भगवान विष्णु को लक्ष्मी जी दी थी ,

वैसे ही जनकजी ने श्रीरामचन्द्रजी को सीताजी समर्पित कीं , जिससे विश्व में सुन्दर नवीन कीर्ति छा गयी ।

 

“कुअँरु कुअँरि कल भवँरि देहीं ,नयन लाभु सब सादर लेहीं।

जाइ न बरन मनोहर जोरी , जो उपमा कछु सो थोरी ।।”

वर और कन्या सुन्दर भाँवरें दे रहे हैं । सब लोग आदर पूर्वक उन्हें देखकर नेत्रों का परम आनंद ले रहे हैं। मनोहर जोड़ी का वर्णन नही हो सकता, जो कुछ उपमा कहूं वही थोड़ी होगी।

“प्रमुदित मुनिन्ह भावँरीं फेरीं, नेगसहित सब रीति निबेरीं।

राम सीय सिर सेंदुर देहींं, सोभा कहि न जाति बिधि केहीं।।”

मुनियों ने आदर पूर्वक भाँवरें फिरायी और नेग सहित सब रीतियों को पूरा किया।

श्रीराम चन्द्र जी सीता जी के सिर में सिन्दूर दे रहे हैं।

यह शोभा किसी प्रकार भी कही नहीं जाती।

श्रीराम चन्द्र जी और जानकी जी श्रेष्ठ आसन पर बैठे उन्हें देखकर दशरथ जी मन में बहुत आनंदित हुए चौदहो भुवनों

में उत्साह भर गया, सबने कहा कि श्रीराम चन्द्र जी का विवाह हो गया।

 

“तब जनक पाइ बसिष्ठ ,आयसु ब्याह साज संवारि कै।

मांडवी श्रुतकीरति ,उरमिला कुआँरि लईं हँकारि कै।

कुसकेतु कन्या प्रथम ,जो गुन सील सुख सोभामई।

सब रीति प्रीति समेत करि ,सो ब्याहि नृप भरतहि दई।”

 

तब वशिष्ठ जी की आज्ञा पाकर जनक जी ने विवाह का सामान सजाकर मांडवी जी , श्रुतकीर्ति जी और उर्मिला जी इन तीनों राजकुमारियों को बुला लिया।

कुशध्वज की बड़ी कन्या मांडवी जी को , जो गुण , शील , सुख और शोभा की रूप ही थी,

राजा जनक ने प्रेम पूर्वक सब रीतियां करके भरत जी को ब्याह दिया।

जानकी जी की छोटी बहिन उर्मिला जी को सब सुन्दर मणियों में शिरोमणि जानकर उस कन्या को सब प्रकार से

सम्मान करके, लक्ष्मण जी को ब्याह दिया ।

और जिनका नाम श्रुतकीर्ति है और जो सुन्दर नेत्र वाली , सुन्दर मुख वाली , सब गुणों की खान और रूप

तथा शील में उजागर हैं उनको राजा ने शत्रुघ्न को ब्याह दिया।

दुलह और दुलहिनें पस्पर अपने-अपने अनुरूप जोड़ी को देखकर सकुचाते हुए हृदय में हर्षित हो रही हैं ।

सब लोग प्रसन्न होकर उनकी सुन्दरता की सराहना करते हैं और देवगण फूल बरसा रहे हैं।

सब पुत्रों को बहुओं सहित देखकर अवध नरेश दशरथ जी आनंदित हो रहे हैं।

||जय श्री सीता राम||

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