सीता-राम विवाह समारोह
“मंगल मूल लगन दिनु आवा हिम रितु अगहनु मासु सुहावा।
ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू।।”
सीता-राम विवाह समारोह
मंगलों का मूल लग्न का दिन आ गया हेमन्त ऋतु और सुहावना अगहन का महीना था। ग्रह , तिथि , नक्षत्र, योग और वार श्रेष्ठ थे।
लग्न शोध कर ब्रह्मा जी ने उस पर विचार किया और उस लग्न पत्रिका को नारद जी के हाथ जनक जी के यहाँ भेज दिया।
तब राजा जनक के पुरोहित सतानंद जी से ब्रह्मा जी ने कहा कि अब देर का क्या कारण है?
तब सतानंद जी ने मंत्रियों को बुलाया वे सब मंगल सामान सजाकर ले आए।
सुन्दर सुहागिन स्त्रियां गीत गा रही हैं और पवित्र ब्राह्मण वेद की ध्वनि कर रहे हैं।
सब लोग इस प्रकार आदर पूर्वक बारात को लेने चले और जहाँ बारातियों का जनवासा था वहाँ गये।
अवधपति दशरथ जी का समाज देखकर उनको देवराज इन्द्र भी बहुत तुच्छ लगने लगे।
उन्होंने जाकर विनती की – अब समय हो गया है, अब पधारिये यह सुनते ही नगाड़ों पर चोट पड़ी।
गुरू वशिष्ठ जी से पूछकर और कुलकी सब रीतियों को करके राजा दशरथ जी मुनियों और
साधुओं के समाज को साथ लेकर चले।
श्रीराम चन्द्र जी के विवाह को देखने के लिए शिव जी , ब्रह्मा जी आदि देववृन्द यूथ (टोलियाँ) बना-बनाकर विमानों पर जा चढ़े।
“राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि।।”
नखसे शिखातक श्रीरामचन्द्र जी के सुन्दर रूप को बार-बार देखते हुए पार्वती जी सहित श्री शिवजी का शरीर पुलकित हो गया और उनके नेत्र जल से भर गये।
राम जी का मोर के कण्ठकी सी कान्तिवाला श्याम शरीर है।
बिजली का अत्यन्त निरादर करने वाले प्रकाशमय सुन्दर रंग के वस्त्र हैं।
सब मंगलरूप और सब प्रकार से सुन्दर भांति – भांति के विवाह के आभूषण शरीर पर सजाये हुए हैं।
“बंधु मनोहर सोहहिं संगा जात नचावत चपल तुरंगा।
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं।”
साथ में मनोहर भाई शोभित हैं, जो चंचल घोड़ों को नचाते हुए चले जा रहे हैं।
राजकुमार श्रेष्ठ घोड़ों को दिखला रहे हैं और वंश की प्रशंसा करने वाले भाट विरुदावली सुना रहे हैं।
अनेक प्रकार से आरती सजकर और समस्त मंगलद्रव्यों को यथायोग्य सजाकर गजगामिनी (हाथी की – सी चालवाली) उत्तम स्त्रियाँ
आनन्दपूर्वक परछन के लिए चलीं।
“जो सुखु भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु।
सो न सकहिं कहि कलप सत सारदा सेषु।।”
श्रीराम चन्द्र जी का प्रवेश देखकर सीता जी की माता सुनैना जी के मन में जो सुख हुआ
उसे हजारो सरस्वती और शेष जी सौ कल्पों में भी नही कह सकते ।
मंगल अवसर जानकर रानी प्रसन्न मन से परछन कर रही हैं।
पंचध्वनि और मंगलगान हो रहे हैं। उन्होंने आरती करके अर्घ्य दिया , तब श्रीराम जी ने मंडप में गमन किया।
“दसरथु सहित समाज बिराजे बिभव बिलोकि लोकपति लाजे।
समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला।।”
दशरथ जी अपनी मंडली सहित विराजमान हुए उनके वैभव को देखकर लोकपाल भी लजा गये।
समय – समय पर देवता फूल बरसाते हैं और भूदेव ब्राह्मण समयानुकूल शान्ति पाठ करते हैं।
आसन पर बैठाकर, आरती करके दूल्हा को देखकर स्त्रियाँ सुख पा रही हैं।
वैदिक और लौकिक सब रीतियाँ करके जनक जी और दशरथ जी बड़े प्रेम से मिले और कहने लगे जबसे ब्रह्मा जी ने जगत उत्पन्न किया है,
तब से हमने बहुत से विवाह देखे- सुने परन्तु सब प्रकार समान साज – समाज और बराबरी के समधी तो आज ही देखे।
राजा ने वामदेव आदि ऋषियों की प्रसन्न मन से पूजा की सभी को दिव्य आसन दिये और सबसे आशीर्वाद प्राप्त किया।
“समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए सादर सतानंदु सुनि आए।
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई चले मुदित मुनि आयसु पाई।।”
समय देखकर वशिष्ठ जी सतानंद जी को आदरपूर्वक बुलाया।
वे सुनकर आदर के साथ आए ।
वशिष्ठ जी ने कहा अब जाकर राजकुमारी को शीघ्र ले आइये।
मुनिकी आज्ञा पाकर वे प्रसन्न मन से चले ब्राह्मणों की स्त्रियों और कुल की बूढ़ी स्त्रियों को
बुलाकर उन्होंने कुलरीति करके सुन्दर मंगल गीत गाए।
रनिवास की स्त्रियां और सखियां सीता जी का श्रंगार करके , मण्डली बनाकर प्रसन्न होकर उन्हें मण्डप में लिवा चली।
“चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजे सुंदरीं सब मत्त कुंजर गामिनी।।
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गति बर बाजहीं।।”
सुदर मंगल का साज सजकर स्त्रियां और सखियां आदर सहित सीता जी को लिवा चली।
सभी सुन्दरियां सोलहो श्रंगार किये हुए मतवाले हाथियों की चाल से चलने वाली हैं।
उनके मनोहर गान को सुनकर मुनि ध्यान छोड़ देते हैं और काम देव की कोयले भी लजा जाती हैं।
पायजेब, पैंजनी और सुन्दर कंगन ताल की गति पर बड़े सुन्दर बज रहे हैं।
सहज ही सुन्दरी सीता जी स्त्रियों के समूह में इस प्रकार शोभा पा रही हैं,
मानो छवि रूपी ललनाओं के समूह के बीच साक्षात परम मनोहर शोभारूपी स्त्री सुशोभित हो।
सीता जी की सुन्दरता का वर्णन नहीं हो सकता, क्योंकि बुद्धि बहुत छोटी है और मनोहरता बहुत बड़ी है।
||जय श्री सीता राम ||
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