अयोध्या में वर – वधू स्वागत 
बरात को आता हुआ सुनकर अयोध्या के नगर निवासी प्रसन्न हो गये। सबने अपने- अपने घरों, बाजारों ,
गलियों और नगर के द्वारों को सजाया। जहां-तहाँ सुन्दर चौक पुराये गए।
अनेक प्रकार के मंगल कलश सजाकर बनाये गये हैं।
उस समय राज महल अत्यंत शोभित हो रहा था। माताएं श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन के लिए अत्यंत
अनुराग भरकर परछन का सब समान सजाने लगे।
सुमित्रा जी ने आनंद पूर्वक मंगल साज सजाए। सभी रानियां बहुत प्रकार की आरती बनाकर आनंदित हुईं
एवं सुन्दर मंगल गान कर रही हैं।
“कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात।
चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात।।”
सोने के थालों को मांगलिक वस्तुओं से भरकर अपने कमल के समान कोमल हाथों में लिए हुए माताएं आनंदित होकर परछन करने चलीं।
समय जानकर गुरु वशिष्ठ जी ने आज्ञा दी तब रघुकुल मणि महाराज दशरथ जी ने शिव जी पार्वती जी
और गणेश जी का स्मरण करके समाज सहित आनंदित होकर नगर में प्रवेश किया।
तब अयोध्या वासियों ने राजा की वंदना की श्रीराम चन्द्र जी को देखते ही वे
सुखी हो गये नेत्रों में जल भर गये एवं शरीर पुलकित हो गए।
“आरति करहिं मुदित पुर नारी हरषहिं निरखि कुअँर बर चारी।
सिबिका सुभग ओहार उघारी देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी।।”
नगर की स्त्रियां आनंदित होकर आरती कर रही हैं और सुन्दर चारों कुमारों को देखकर हर्षित हो रहीं हैं।
पालकियों के सुन्दर पर्दे वे हटा- हटाकर वे दुल्हिनों को देखकर सुखी होती हैं।
इस प्रकार सबको सुख देते हुए राज द्वार पर आए माताएं आनंदित होकर बहुओं सहित कुमारों का परछन कर रही हैं।
बहुओं सहित चारों पुत्रों को देखकर माताएं परमानंद में मग्न हो गईं।
सीता जी और राम जी की छवि को बार-बार देखकर वे जगत में जीवन को सफल मानकर आनंदित हो रही हैं।
चारो मनोहर जोड़ियों को देखकर सरस्वती ने सारी उपमाओं को खोज डाला, पर कोई उपमा देते नही बनी।
“निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत।
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत।”
वेद की विधि और कुल की रीति करके अर्घ्य-पाँवड़े देती हुई बहुओं समेत सब पुत्रों को परछन करके माताएं महल में लिवा चलीं।
सुन्दर चार सिंहासन थे जो मानो कामदेव ने अपने हाथ से बनाए थे
उन पर माताओं ने राज कुमारिओं और राजकुमारों को बैठाया और आदर के साथ उनके पवित्र चरण धोये।
फिर वेद की विधि के अनुसार मंगलों के निधान दुलह और दुलहिनों की धूप, दीप और नैवेद्य आदि के द्वारा पूजन की ।
अनेकों वस्तुएं निछावर हो रही हैं। सभी माताएं आनंद से भरी हुई ऐसे सुशोभित हो रही हैं मानो योगी ने परम तत्व को प्राप्त कर लिया।
फिर सीता जी सहित श्रीराम चन्द्र जी को हृदय में रखकर गुरु वशिष्ठ जी हर्षित होकर अपने स्थान को गए।
उसके पश्चात राजा ने सबका सब प्रकार से सम्मान करके कोमल वचन कहकर रानियों को बुलाया और कहा – बहुएं अभी बच्ची हैं प
राये घर आयी हैं इनको इस तरह से रखना जैसे नेत्रों को पलके रखती हैं।
इसके पश्चात सभी सोने चले गये।
अगले दिन प्रात काल भाट और मागधों ने गुणों का गान किया तथा नगर के लोग द्वार पर जोहार करने को आए।
“बंदि बिप्रु सुर गुर पितु माता पाइ असीस मुदित सब भ्राता।
जननिन्ह सादर बदन निहारे भूपति संग द्वार पगु धारे।”
ब्राह्मणों , देवताओं, गुरु, पिता और माताओं की वंदना करके आशीर्वाद पाकर सब भाई प्रसन्न हुए ।
माताओं ने आदर के साथ उनके मुखों को देखा फिर वे राजा के साथ बाहर पधारे।
फिर मुनि वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी आए राजा ने उनको सुन्दर आसनों पर बैठाया और पुत्रों समेत उनकी पूजा करके उनके चरण लगे।
नित्य ही मंगल , आनंद और उत्सव होते हैं इस तरह आनंद से दिन बीतते जाते हैं। अयोध्याआनंद से भरकर उमड़ पड़ी।
इस प्रकार नित्य नये सुखों को देखकर देवता सिहाते हैं और अयोध्यामें जन्म पाने के लिए ब्रह्मा जी से याचना करते हैं।
विश्वामित्र जी अपने आश्रम जाना चाहते हैंं पर श्रीरामचन्द्र जी के स्नेह और विनय वस रह जाते हैं।
अन्त में जब विश्वामित्र जी ने विदा मांगी तब राजा प्रेम मग्न हो गए और बोले
हे नाथ यह सारी सम्पदा आपकी है मै तो स्त्री – पुत्रों सहित आपका सेवक हूँ।
ऐसा कहकर पुत्रों और रानियों सहित राजा दशरथ जी विश्वामित्र जी को प्रणाम किया।
ब्राह्मण विश्वामित्र जी ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद दिए और वे चल पड़े।
“आए ब्याहि रामु घर जब तें बसइ अनंद अवध सब तब तें।
प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू।।”
जब से श्रीरामचन्द्र जी विवाह करके घर आए तब से सब प्रकार का आनंद अयोध्या में आकर बसने लगा।
प्रभु के विवाह में जैसा आनंद – उत्सव हुआ उसे सरस्वती और सर्पों के राजा शेष जी भी नहीं कह सकते।
श्री सीता राम जी के यश को कवि कुल के जीवन को पवित्र करने वाले और मंगलों की खान जानकर इससे मैने अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए कुछ बखान कर कहा है।
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
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जब भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तो सम्पूर्ण नगर ने हर्ष और उल्लास के साथ उनका स्वागत किया।
अयोध्यावासियों ने अपने घरों को दीपों से सजाया, पूरी नगरी दीपमालाओं से जगमगा उठी, जिसे आज दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
लोगों ने जगह-जगह रंगोली बनाई, पुष्पों की वर्षा की और मंगल गीत गाए।
अयोध्याके राजा दशरथ के निधन के बाद भगवान राम के आगमन से समस्त नगरवासियों में उत्साह था।
अयोध्यावासी अपने प्रिय राजा के लौटने पर अत्यंत प्रसन्न थे।
भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी समय हुआ, और अयोध्या में आनंद और समृद्धि का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ।
||जय श्री सीता राम ||
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