श्री रामचन्द्रजी का राजतिलक – 2

श्री रामचन्द्रजी का राजतिलक – 2

श्री रामचन्द्रजी का राजतिलक

“सुनत राम अभिषेक सुहावा , बाज गहागह अवध बधावा ।

राम सीय तन सगुन जनाए , फरकहिं मंगल अंग सुहाए।।”

श्री रामचन्द्रजी के राजतिलक

की सुहावनी खबर सुनते ही अवध भर में बड़ी धूम से बधावे बजने लगे ।

श्री रामचन्द्रजी और सीताजी के शरीर में भी शुभ शकुन सूचित हुए । उनके सुन्दर मंगल अंग फड़कने लगे ।

पुलकित होकर वे दोनों प्रेम सहित एक – दूसरे से कहते है कि ये सब शकुन भरत के आने की सूचना देने वाले हैं।

“एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु ।

सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु ।।”

इसी समय यह परम मंगल समाचार सुनकर सारा रनिवास हर्षित हो उठा । जैसे चन्द्रमा को बढ़ते देखकर समुन्द्र में लहरों का विलास सुशोभित होता है ।

“चौकें चारु सुमित्राँ पूरी , मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी ।

आनँद मगन राम महतारी , दिए दान बहु बिप्र हँकारी ।।”

सुमित्राजी ने मणियों के बहुत प्रकार के अत्यन्त सुन्दर और मनोहर चौक पूरे । आनन्द में मग्न हुई श्रीरामचन्द्रजी की माता कौसल्याजी ने ब्राह्मणों को बुलाकर बहुत दान दिये ।

रामजी का राज्याभिषेक रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है। जब भगवान राम 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटते हैं, तो माता सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी के साथ उनका भव्य स्वागत होता है।

अयोध्या के लोग रामजी को राजा के रूप में स्वीकारने के लिए उत्सुक रहते हैं। भरत, जो राम के चरण पादुका रखकर अयोध्या का कार्यभार संभालते थे, उनके लौटने पर खुशी से राज्य का दायित्व राम को सौंपते हैं।

गुरु वशिष्ठ राम का राज्याभिषेक करते हैं।

यह राज्याभिषेक धर्म, न्याय और आदर्श शासन की स्थापना का प्रतीक है, जो भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप को उजागर करता है।

राम जी का राज्याभिषेक:

आदर्श शासन की स्थापना रामायण महाकाव्य भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रमुख आधार है, जिसमें भगवान राम का जीवन, आदर्श, और उनके गुणों का वर्णन किया गया है।

रामायण का हर प्रसंग नैतिकता, आदर्श और जीवन के प्रति एक मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है।

इसी महाकाव्य में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और भावनात्मक प्रसंग है – राम जी का राज्याभिषेक, जिसे “रामराज्य” की स्थापना के रूप में जाना जाता है।

राम के राज्याभिषेक का यह प्रसंग आदर्श शासन, नैतिकता, और मर्यादा के साथ जुड़े कई गहरे अर्थों को प्रस्तुत करता है।

वनवास की समाप्ति और अयोध्या वापसी भगवान राम का राज्याभिषेक उस समय हुआ जब उन्होंने अपने 14 वर्षों का वनवास समाप्त किया और रावण पर विजय प्राप्त कर माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे।

राम का वनवास उनके पिता, महाराज दशरथ, द्वारा माता कैकेयी को दिए गए दो वरदानों के कारण हुआ था, जिसके तहत राम को 14 वर्षों तक वन में रहना था

और भरत को अयोध्या का राज्य सौंपना था। राम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और अपने धर्म का निर्वहन करते हुए वनवास को स्वीकार किया।

वनवास के दौरान राम ने न केवल रावण जैसे शक्तिशाली राक्षस को हराया, बल्कि उन्होंने कई कष्टों और चुनौतियों का सामना भी किया।

उनकी इस यात्रा ने उन्हें एक आदर्श नायक, एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श पति, और एक आदर्श भाई के रूप में प्रतिष्ठित किया।

जब वनवास की अवधि समाप्त हुई और राम अयोध्या लौटे, तब अयोध्या नगरी में खुशी और उत्साह का माहौल था।

भरत की निष्ठा और समर्पण वनवास के समय,

 

जब भरत को पता चला कि उनकी माता कैकेयी के कारण राम को वनवास जाना पड़ा, तो वे अत्यंत दुखी हुए।

उन्होंने न तो राज्य की बागडोर संभाली और न ही राजगद्दी पर बैठे। भरत का राम के प्रति प्रेम और सम्मान अटूट था।

उन्होंने राम के चरणपादुका (चरण चिन्हों) को राजसिंहासन पर रखकर यह संकेत दिया कि राज्य राम का ही है, वे केवल उसकी देखभाल कर रहे हैं।

भरत ने राम के लौटने तक नंदीग्राम में रहकर तपस्वी जीवन जिया और यह प्रतीक्षा की कि राम कब लौटेंगे और राज्य का संचालन करेंगे।

जब राम अयोध्या लौटे, तो भरत ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ राम का स्वागत किया और उनसे राज्य का भार संभालने की प्रार्थना की।

भरत की यह निष्ठा और समर्पण रामायण के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, जो हमें परिवार और कर्तव्य के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण सिखाता है।

राज्याभिषेक की तैयारी राम के अयोध्या लौटने पर समस्त अयोध्यावासियों में हर्षोल्लास का माहौल था।

नगर के सभी लोग राम के स्वागत के लिए तैयार थे। अयोध्या नगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया।

हर घर में दीप जलाए गए, और हर व्यक्ति अपने प्रिय राजा को देखने के लिए व्याकुल था।

राम का अयोध्या लौटना न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि समस्त अयोध्या और मानवता के लिए एक विशेष क्षण था।

गुरु वशिष्ठ, जो राम के आध्यात्मिक और नैतिक गुरु थे, उन्होंने राम के राज्याभिषेक की विधि-व्यवस्था की जिम्मेदारी ली। उ

न्होंने संपूर्ण राज्याभिषेक की तैयारियों की देखरेख की। यह राज्याभिषेक एक सामान्य राज्याभिषेक नहीं था, यह आदर्श और धर्म की स्थापना का प्रतीक था।

राज्याभिषेक का आयोजन

 

राम के राज्याभिषेक का दिन निश्चित हुआ। राज्याभिषेक का समारोह अत्यंत भव्य और वैदिक परंपराओं के अनुसार संपन्न हुआ।
राम और सीता दोनों को सोने के सिंहासन पर बिठाया गया।
चारों दिशाओं में वेद मंत्रों का उच्चारण हो रहा था। अयोध्या के प्रमुख ब्राह्मणों, ऋषियों और विद्वानों ने राम को आशीर्वाद दिया।

 

गुरु वशिष्ठ ने विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के साथ राम का राज्याभिषेक किया। उन्होंने राम के सिर पर पवित्र जल छिड़का और उन्हें अयोध्या का राजा घोषित किया।

 

भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव और अन्य मित्र एवं अनुयायी इस महोत्सव में उपस्थित थे।

यह राज्याभिषेक न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह नैतिकता और आदर्श शासन के स्थापित होने का प्रतीक था।

रामराज्य:

आदर्श शासन की स्थापना राम के राज्याभिषेक के बाद जो शासन व्यवस्था स्थापित हुई, उसे “रामराज्य” के नाम से जाना जाता है। रामराज्य वह आदर्श शासन है, जिसमें धर्म, न्याय, और सत्य का पालन होता है।

यह राज्य ऐसी व्यवस्था का प्रतीक है, जहां राजा केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी प्रजा के कल्याण के लिए शासन करता है।

रामराज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध थे। राजा राम ने हमेशा धर्म और न्याय के मार्ग पर चलकर अपनी प्रजा की सेवा की।

रामराज्य की विशेषताएँ इस प्रकार थीं:

न्याय और धर्म की स्थापना: राम ने अपने शासनकाल में न्याय और धर्म की स्थापना की।

उन्होंने कभी भी अन्याय का समर्थन नहीं किया और हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहे।

प्रजा का कल्याण: राम का शासन प्रजा के हित में था। उन्होंने हर व्यक्ति के सुख-दुख का ध्यान रखा और अपनी प्रजा को एक परिवार के सदस्य की तरह माना।

नैतिकता और आदर्श: रामराज्य नैतिकता और आदर्शों की मिसाल था। राजा राम ने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उन्हीं आदर्शों का पालन किया, जो उन्होंने अपने राज्य में लागू किए।

समानता और समृद्धि: रामराज्य में सभी वर्गों और जातियों के लोग समान थे। किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाता था। हर व्यक्ति को अपने अधिकार और सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर मिलता था।

शांति और समृद्धि: रामराज्य में शांति और समृद्धि का माहौल था। लोग अपने कर्तव्यों का पालन करते थे, और समाज में सामंजस्य बना रहता था।

राज्याभिषेक का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रामजी का राज्याभिषेक न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी था।

रामराज्य की स्थापना भारतीय समाज के लिए एक आदर्श शासन का प्रतीक बन गई। यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि सत्ता का उद्देश्य केवल शासन करना नहीं है, बल्कि यह प्रजा के कल्याण और न्याय की स्थापना के लिए होना चाहिए।

राम का राज्याभिषेक भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास में आदर्श शासन की एक अमिट छाप छोड़ता है।

रामराज्य केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक आदर्श है, जो आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है।

यह उस शासन की प्रतीकात्मकता को दर्शाता है, जिसमें राजा न केवल अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के लिए, बल्कि अपने राज्य और प्रजा के कल्याण के लिए कार्य करता है।

निष्कर्ष :
राम जी का राज्याभिषेक भारतीय संस्कृति में आदर्श शासन और नैतिकता की स्थापना का प्रतीक है। रामराज्य वह आदर्श समाज है, जिसमें न्याय, धर्म, और प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि माना जाता है। राम के जीवन और उनके राज्याभिषेक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे नेता और राजा वही होते हैं, जो अपने कर्तव्यों का पालन निस्वार्थ भाव से करते हैं और अपने राज्य की प्रजा को अपने परिवार की तरह मानते हैं। राम का राज्याभिषेक एक ऐसा प्रसंग है, जो हमें आदर्श जीवन और शासन की प्रेरणा देता है।

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||जय सिया राम ||

nameste

पूरे 14 वर्ष के वनवास के बाद विजय प्राप्त कर लंका से अयोध्या लौटने पर प्रभु श्री राम का राजतिलक हुआ था. गुरु वशिष्ठ के आदेश पर राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू हुईं जिसके बाद सबसे पहले गुरु वशिष्ठ ने ही उनका राजतिलक किया.

वह यहां 11 हजार वर्षों तक रहे. इतने वर्षों में उन्‍होंने असंख्‍य दुष्‍टों का संहार किया. अधर्मियों को दंडित कर धर्म की स्‍थापना की.

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