बसंत पंचमी – महत्व, परंपराओं और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

बसंत पंचमी – महत्व, परंपराओं और सांस्कृतिक दृष्टिकोण – 

 
बसंत पंचमी

बसंत पंचमी:

महत्व, परंपराएँ और सांस्कृतिक दृष्टिकोण भूमिका बसंत पंचमी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विद्या, ज्ञान, संगीत, कला और ऋतु परिवर्तन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुख्य रूप से यह दिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित होता है, जो ज्ञान, संगीत और कला की देवी मानी जाती हैं।

इस दिन को ‘सरस्वती पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है और इसे बसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

बसंत पंचमी का महत्व – 

1. धार्मिक महत्व बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में देवी सरस्वती को ज्ञान, विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है।मान्यता है कि इसी दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था, इस कारण विद्या आरंभ करने के लिए इसे बहुत शुभ माना जाता है। खासकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई शुरू करने के लिए यह दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है, जिसे ‘अक्षरारंभ’ या ‘विद्यारंभ’ संस्कार भी कहते हैं। 2. सांस्कृतिक महत्व यह त्योहार भारत के कई हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों में देवी सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है, जहाँ देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।

2. सांस्कृतिक महत्व यह त्योहार भारत के कई हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों में देवी सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है, जहाँ देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।

3. ऋतु परिवर्तन और कृषि संबंधी महत्व बसंत पंचमी भारत में बसंत ऋतु के आगमन का संकेत देती है। इस समय प्रकृति में हरियाली और नयी ऊर्जा का संचार होता है। खेतों में सरसों के पीले फूल खिल उठते हैं, जो इस पर्व का प्रमुख रंग भी माना जाता है। किसान इस मौसम में विशेष रूप से खुश होते हैं क्योंकि यह समय फसलों के लिए अनुकूल होता है।

बसंत पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

1. देवी सरस्वती की उत्पत्ति पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की, तो पृथ्वी पर चारों ओर मौन और अज्ञानता छाई हुई थी। इसे दूर करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे देवी सरस्वती प्रकट हुईं। देवी ने वीणा बजाकर सृष्टि को संगीत और वाणी प्रदान की। इसीलिए देवी सरस्वती को ज्ञान और संगीत की देवी माना जाता है और उनकी पूजा बसंत पंचमी के दिन की जाती है।

2. कामदेव और रति की कथा एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान शिव सती के वियोग में ध्यानमग्न हो गए थे, तब माता पार्वती ने उन्हें पुनः प्रसन्न करने के लिए भगवान कामदेव को भेजा। कामदेव ने शिव पर प्रेम बाण चलाया जिससे उनका ध्यान भंग हुआ। हालांकि, शिव जी ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया, लेकिन बाद में रति के प्रार्थना करने पर उन्हें पुनः जीवनदान मिला। इस कारण इसे प्रेम और नई ऊर्जा का त्योहार भी माना जाता है।

बसंत पंचमी की परंपराएँ और रीति-रिवाज

1. देवी सरस्वती की पूजा इस दिन प्रातः स्नान करके देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। घरों में और विशेष रूप से विद्यालयों में देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और वाद्ययंत्रों को देवी के चरणों में रखकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन पीले वस्त्र पहनने और पीले रंग के फूल, हल्दी और चावल का प्रयोग करने की परंपरा है।

2. विद्यारंभ संस्कार इस दिन छोटे बच्चों को पहली बार लिखने-पढ़ने की शुरुआत करवाई जाती है। पश्चिम बंगाल और बिहार में इस अवसर को विशेष रूप से मनाया जाता है, जहाँ छोटे बच्चे देवी सरस्वती के चरणों में बैठकर “ॐ” लिखते हैं।

3. पतंग उड़ाने की परंपरा बसंत पंचमी के दिन खासतौर पर उत्तर भारत में पतंग उड़ाने की परंपरा है। लोग सुबह से शाम तक छतों पर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं और “बो काटा” के नारे गूंजते हैं।

4. विशेष भोज और प्रसाद इस दिन खासतौर पर केसर मिश्रित मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं, जैसे- केसर हलवा, मीठे चावल, बेसन लड्डू आदि। सरसों के पीले फूलों से सजे पकवानों को देवी सरस्वती को अर्पित किया जाता है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में बसंत पंचमी का उत्सव – 

1. त्तर भारत उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में इस दिन देवी सरस्वती की पूजा के साथ पतंग उड़ाने का आयोजन होता है। पंजाब में इसे ‘बसंत का त्योहार’ भी कहा जाता है और इस दिन लोग गिद्दा और भंगड़ा करते हैं।

2. पश्चिम बंगाल यहाँ बसंत पंचमी को ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में भव्य तरीके से मनाया जाता है। घरों, विद्यालयों और कॉलेजों में देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर भोग और प्रसाद चढ़ाया जाता है।

3. राजस्थान और मध्य प्रदेश इन राज्यों में लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और मंदिरों में विशेष पूजा करते हैं। यहाँ यह दिन विवाह और नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।

4. महाराष्ट्र और दक्षिण भारत यहाँ इस दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा का विशेष महत्व है। कुछ स्थानों पर विवाहित जोड़ों को पीले वस्त्र और मिठाइयाँ भेंट करने की परंपरा भी है।

निष्कर्ष बसंत पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि यह शिक्षा, संगीत, प्रेम और नई ऊर्जा का संदेश देने वाला त्योहार है। यह न केवल प्रकृति में बदलाव का प्रतीक है, बल्कि समाज को नई ऊर्जा और उत्साह से भर देता है। देवी सरस्वती की पूजा के माध्यम से हम ज्ञान और विद्या की शक्ति को सम्मान देते हैं, जबकि पतंगबाजी और पीले वस्त्र इस पर्व को और भी आकर्षक बना देते हैं। बसंत पंचमी हमें यह भी सिखाती है कि ज्ञान और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। 

जय श्री राम

Friday, January 23, 2026

रस्वती पूजा 2025 रविवार, 2 फरवरी, 2025 को पड़ रही है। Drikpanchang.com के अनुसार, वसंत पंचमी मुहूर्त सुबह 09:14 बजे से दोपहर 12:11 बजे तक 2 घंटे 57 मिनट की अवधि के साथ है।

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