Katha Mahashivratri Vrat : महाशिवरात्रि कथा
महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इसे शिव भक्त उपवास, रात्रि जागरण और विशेष पूजन करके मनाते हैं।
इस दिन शिवलिंग की पूजा विशेष रूप से की जाती है, क्योंकि एक पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। यह दिन आत्मशुद्धि, भक्ति और ध्यान का प्रतीक माना जाता है।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
1. समुद्र मंथन और हलाहल विष एक बार देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया।
जब मंथन शुरू हुआ तो उसमें से अनेक रत्न, देवी-देवता, अप्सराएँ, धन-वैभव आदि प्राप्त हुए। इसी मंथन के दौरान भयंकर हलाहल विष भी निकला।
यह विष इतना जहरीला था कि यदि वह पृथ्वी पर फैल जाता, तो सम्पूर्ण सृष्टि का नाश हो सकता था।
देवताओं और असुरों ने इस विष से बचने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे “नीलकंठ” कहलाए।
यही कारण है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के इस महान त्याग और कल्याणकारी रूप की पूजा करने का दिन माना जाता है।
2. शिव-पार्वती विवाह कथा एक अन्य कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। पहले जन्म में माता पार्वती ने “सती” के रूप में जन्म लिया था और वे भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं।
लेकिन जब उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया, तो सती ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद, माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय राज के घर जन्म लिया।
उन्होंने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने माता पार्वती की भक्ति को देखकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह हुआ।
इसलिए इस दिन को शिव-पार्वती के पवित्र मिलन के रूप में भी मनाया जाता है।
3. शिकारी और शिवलिंग की कथा एक अन्य कथा के अनुसार, एक शिकारी जंगल में शिकार करने गया। दिनभर उसे कोई शिकार नहीं मिला, और रात हो गई।
भूखा-प्यासा वह एक बेल वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। रातभर उसे जगने के लिए बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकता रहा।
सुबह होते ही भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, “हे शिकारी! तुमने अज्ञानतावश ही सही, लेकिन पूरी रात मेरा पूजन किया और बेलपत्र अर्पित किए, जिससे तुम धन्य हो गए।
अब तुम मोक्ष प्राप्त करोगे।” इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि की पूजा-विधि
1. उपवास और नियम महाशिवरात्रि पर भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। कुछ लोग फलाहार और दूध का सेवन करते हैं, तो कुछ केवल जल ग्रहण करते हैं। इस दिन संयम और नियम का पालन करना आवश्यक होता है।
2. शिवलिंग का अभिषेक शिवलिंग का अभिषेक दूध, दही, शहद, गंगा जल और बेलपत्र से किया जाता है। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल) से शिवलिंग स्नान कराया जाता है। अभिषेक करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है।
3. रात्रि जागरण और मंत्र जाप भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भगवान शिव का ध्यान करते हैं। शिवपुराण, रुद्राष्टक, शिव तांडव स्तोत्र आदि का पाठ किया जाता है। भगवान शिव के प्रिय मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का निरंतर जप किया जाता है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और भक्ति का दिन है।
1. आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग भगवान शिव को संहारक और पुनर्जन्म का देवता माना जाता है। वे हमें यह सिखाते हैं कि नश्वर संसार के मोह से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए।
2. साधना और भक्ति यह दिन साधना, ध्यान और भक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। जो लोग सच्चे मन से शिव की उपासना करते हैं, वे अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करते हैं।
3. सकारात्मक ऊर्जा का संचार महाशिवरात्रि के दिन उपवास, पूजा और जागरण करने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
निष्कर्ष महाशिवरात्रि एक दिव्य पर्व है, जिसमें भक्त भगवान शिव की पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह दिन हमें त्याग, भक्ति, ध्यान और आत्मज्ञान की प्रेरणा देता है। भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम सत्य के प्रतीक हैं।
वे हमें यह सिखाते हैं कि मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मज्ञान प्राप्त करना ही जीवन का परम लक्ष्य है। इस महाशिवरात्रि पर हम सभी भगवान शिव की कृपा से आत्मशुद्धि, भक्ति और मोक्ष की ओर अग्रसर हों।
हर-हर महादेव!
महाशिवरात्रि की कथा क्या है?
शिवरात्रि की असली कहानी क्या है?
तीसरी कथा के अनुसार, फाल्गुन माह की चतुर्दशी को माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था. इस दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़ गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था. शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के तौर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्त पूजन और व्रत करके इस उत्सव को मनाते हैं. यह दिन भगवान शिव के सम्मान में भी मनाया जाता है.
शिव-पार्वती विवाह कथा एक अन्य कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। पहले जन्म में माता पार्वती ने “सती” के रूप में जन्म लिया था और वे भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं।
लेकिन जब उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया, तो सती ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद, माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय राज के घर जन्म लिया।
उन्होंने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने माता पार्वती की भक्ति को देखकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह हुआ।
इसलिए इस दिन को शिव-पार्वती के पवित्र मिलन के रूप में भी मनाया जाता है।