रामनवमी: 
भगवान श्रीराम के जन्म का पावन पर्व रामनवमी का त्योहार हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में आता है।
इस दिन को खास इसलिए माना जाता है क्योंकि भगवान श्रीराम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, इसी दिन अयोध्या में जन्मे थे। भगवान श्रीराम का जन्म हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जब त्रेतायुग में रावण जैसे राक्षसों का आतंक फैल गया था और धर्म संकट में था, तब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
कहते हैं कि राम जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में, राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ था।
राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं — कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा। बहुत समय तक संतान न होने के कारण वे चिंतित रहते थे। तब ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी।
यज्ञ के बाद अग्निदेव खीर की कटोरी लेकर प्रकट हुए और वह खीर तीनों रानियों को दी गई। नौ महीने बाद, कौशल्या ने श्रीराम, कैकयी ने भरत और सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।
रामचरितमानस और तुलसीदास जी गोस्वामी तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस की रचना रामनवमी के दिन ही शुरू की थी। उन्होंने भगवान श्रीराम के जन्म का बेहद सुंदर और भावुक वर्णन किया है:
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी,
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।
इन पंक्तियों में श्रीराम के जन्म की घड़ी का सौंदर्य और दिव्यता झलकती है। पूजन और परंपराएँ रामनवमी के दिन लोग भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की पूजा करते हैं।
पहले देवताओं को जल, रोली, चावल चढ़ाया जाता है, फिर आरती होती है।
कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। इस दिन चैत्र नवरात्रि का भी समापन होता है।
भारत भर में उल्लास रामनवमी केवल उत्तर भारत में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत में बड़े श्रद्धा और उत्साह से मनाई जाती है।
तेलंगाना के भद्राचलम मंदिर में तो यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
राम नवमी पूजा विधि व कथा :
भूमिका
रामनवमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख और पावन त्योहार है। यह पर्व भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। यह पर्व न केवल भगवान राम के जन्म की खुशी में मनाया जाता है, बल्कि यह सत्य, धर्म और मर्यादा की विजय का प्रतीक भी है।
इस दिन देशभर में श्रद्धालु पूजा, व्रत, कीर्तन और कथा के माध्यम से भगवान श्रीराम की आराधना करते हैं।
राम नवमी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रामनवमी का महत्व केवल एक जन्मदिवस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य आदर्श की याद दिलाता है।
श्रीराम वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर धर्म और कर्तव्य का पालन किया। रावण जैसे राक्षसी प्रवृत्तियों के नाश के लिए भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है:
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
यह वर्णन भगवान श्रीराम के अवतरण की उस पावन घड़ी का है, जब समस्त ब्रह्मांड में आनंद की लहर दौड़ गई थी।
राम नवमी व्रत एवं पूजन विधि:
राम नवमी के दिन व्रत और पूजन का विशेष महत्व है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, और विधिवत पूजा करके भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
राम नवमी व्रत और पूजन विधि को क्रमबद्ध रूप से बताया गया है:
1. व्रत की तैयारी व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन करें। व्रत के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। घर को साफ-सुथरा करके पूजा स्थल को पवित्र करें।
2. पूजन सामग्री श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाएं या चित्र रोली, चावल, हल्दी, फूल, जल का कलश पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर) तुलसी के पत्ते कपूर, अगरबत्ती, दीपक भोग सामग्री (फल, मिठाई, पंचमेवा, खीर आदि) पीला वस्त्र |
4. देवताओं का आह्वान और अर्चना भगवान गणेश, मातृका, नवग्रह, पंच तत्व आदि का आह्वान करें। श्रीराम जी की पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा करें: आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अभूषण, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती। श्रीराम जन्म की कथा सुनें या पढ़ें (नीचे दी गई है)।
5. आरती और भजन पूजा के अंत में श्रीराम की आरती करें:
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन…
राम नाम का जप करें:
“श्रीराम जय राम जय जय राम” भजन-कीर्तन करें।
6. प्रसाद वितरण आरती के बाद सबको प्रसाद वितरित करें। व्रतधारी दिनभर फलाहार करके शाम को एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करें।
राम जन्म की कथा बहुत समय पहले की बात है — अयोध्या के राजा दशरथ अत्यंत पराक्रमी और धर्मात्मा थे।
उनकी तीन रानियाँ थीं — कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा। परंतु उन्हें संतान नहीं हो रही थी। राजा दशरथ बहुत चिंतित रहते थे, तब उनके कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ की अग्नि से अग्निदेव प्रकट हुए और उन्होंने राजा को खीर दी, जिसे तीनों रानियों ने ग्रहण किया।
समय आने पर कौशल्या से श्रीराम, कैकयी से भरत, और सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी, पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था। उनके जन्म पर अयोध्या में उत्सव मनाया गया।
चारों भाई बड़े होकर धर्म, नीति और सेवा के आदर्श बने। श्रीराम ने बाद में जनकपुर की राजकुमारी सीता से विवाह किया, और फिर वनवास, सीता हरण, रावण वध जैसी घटनाओं के माध्यम से उन्होंने धर्म की पुनर्स्थापना की।
राम नवमी और नवरात्रि का संबंध रामनवमी केवल श्रीराम का जन्मदिवस नहीं है, बल्कि चैत्र नवरात्रि का अंतिम दिन भी होता है।
इस दिन माँ दुर्गा की नवमी पूजा भी की जाती है। कई लोग कन्या पूजन (कंजक) करके उन्हें भोजन कराते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
भारत में रामनवमी की धूम रामनवमी पूरे भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाई जाती है। कुछ प्रमुख स्थान जहाँ यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है:
अयोध्या (उत्तर प्रदेश) – भगवान राम की जन्मभूमि, यहाँ लाखों भक्त सरयू नदी में स्नान करके पूजा करते हैं।
भद्राचलम (तेलंगाना) – राम नवमी के दिन भव्य उत्सव और विवाह उत्सव (राम-सीता विवाह) होता है।
सीतामढ़ी (बिहार) – माता सीता की जन्मस्थली होने के कारण यहाँ भी भव्य आयोजन होते हैं।
राम नवमी का आध्यात्मिक संदेश रामनवमी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितने भी कष्ट क्यों न आएं, अगर हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलें तो विजय हमारी ही होगी। भगवान राम का जीवन त्याग, प्रेम, विनय और आदर्शों से परिपूर्ण है। उनके जीवन से हम सीख सकते हैं:
1-माता-पिता के प्रति आदर
2-भ्रातृ प्रेम
3-जीवन में संयम और मर्यादा
4-सत्य के लिए संघर्ष
रामनवमी एक ऐसा पर्व है जो केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस दिन भक्तगण भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं।
श्रीराम का जन्म केवल रावण जैसे राक्षसों के विनाश के लिए नहीं, बल्कि एक आदर्श मनुष्य के रूप में जीवन जीने की प्रेरणा देने के लिए हुआ था।
जय श्रीराम!