श्री रामचन्द्र जी का राजतिलक-2 , (अयोध्या काण्ड)

 

“रचहु मंजु मनि चौकें चारू ,कहहु बनावन बेगि बजारू।श्री रामचन्द्र जी का राजतिलक-2 , अयोध्या काण्ड

पूजहु गनपति गुर कुलदेवा ,सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा “||

अयोध्या में 
सुन्दर मणियों के मनोहर चौक पुरवाओ और बाजार को तुरंत सजाने के लिए कह दो।

श्री गणेश जी, गुरु और कुलदेवता की पूजा करो और भूदेव ब्राह्मणों की सब प्रकार से सेवा करो ।

मुनि श्रेष्ठ वशिष्ठ जी के वचनों को शिरोधार्य करके सब लोग अपने-अपने काम मे लग गये।

 

मुनीश्वर ने जिसको जिस काम के लिए आज्ञा दी, उसने वह काम इतनी शीघ्रता से कर डाला मानो पहले से ही कर रखा था।

राजा ब्राह्मण , साधु और देवता पूज रहे हैं और श्री रामचन्द्र जी के लिए मंगल कार्य कर रहे हैं।

“सुनत राम अभिषेक सुहावा, बाज गहागह अवध बधावा।
राम सीय तन सगुन जनाए ,फरकहिं मगंल अंग सुहाए।।”

श्रीराम चन्द्र जी के राज्याभिषेक की सुहावनी खबर सुनते ही अवध में बड़ी धूम से बधावे बजने लगे ।

श्रीरामचन्द्र जी और सीता जी के शरीर में भी शुभ शकुन सूचित हुए उनके सुन्दर मंगल अंग फड़कने लगे।

“पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं ,भरत आगमनु सूचक अहहीं।

भए बहुत दिन अति अवसेरी ,सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी।।”

पुलकित होकर वे दोनो प्रेम सहित एक दुसरे से कहते हैं कि ये सब सकुन भरत के आने की सूचना देने वाले हैं ।

बहुत दिन हो गये बहुत ही अवसर आ रहे हैं सकुनों से प्रिय भरत के मिलने का विश्वास होता है

और भरत के समान जगत में हमें कौन प्यारा है।

सकुन का बस यही फल है दूसरा नही।

“एहि अवसर मंगलु ,सुनि रहँसेउ रनिवासु।

सोभत लखि बिधु बढ़त ,जनु बाऱिधि बीचि बिलासु।।”

इसी समय यह परम मंगल समाचार सुनकर सारा रनिवास हर्षित हो उठा जैसे चन्द्रमा को बढ़ते देखकर समुद्र में लहरों का आनंद सुशोभित होता है।

तब राजा ने वशिष्ठ जी को बुलाया और शिक्षा देने के लिए श्रीराम चन्द्र जी के महल में भेजा। गुरु का आगमन सुनते ही

श्री रघुनाथ जी ने दरवाजे पर आकर उनके चरणों में मष्तक नवाया।

आदरपूर्वक अर्ग देकर उन्हें घर में लाए और पूजा करके उनका सम्मान किया।

फिर सीता जी सहित उनके चरण स्पर्श किये और कमल के समान दोनो हाथों को जोड़कर श्रीराम जी बोले-

“सेवक सद स्वामि आगमनू  ,मंगल मूल अमंगल दमनू।
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीति ,पठइअ काज नाथ असि नीति।।”

यद्दपि सेवक के घर स्वामी का पधारना मंगलों का मूल और अमंगलों का नाश करने वाला होता है, तथापि हे नाथ उचित तो यही था

कि प्रेमपू्र्वक दास को ही कार्य के लिए बुलावा भेजते ऐसी ही नीति है।

परन्तु प्रभु आपने प्रभुता छोड़कर स्वयं यहां पधारकर जो स्नेह किया , इससे आज यह घर पवित्र हो गया

हे गोसाईं अब जो आज्ञा हो वही मैं करूं।

स्वामी की सेवा में ही सेवक का लाभ है।

श्रीरामचन्द्र जी के प्रेम से सने हुए वचनों को सुनकर मुनि वशिष्ठ जी ने

श्री रघुनाथ जी प्रशंसा करते हुए कहा कि हे राम भला आप ऐसा क्यों न कहें आप सूर्यवंश के भूषण जो हैं।

“बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ ,बोले प्रेम पुलकि मुनि राऊ।
भूप सजेउ अभिषेक समाजू ,चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।।”

श्रीरामचन्द्र जी के गुण , शील और स्वभाव का बखान कर , मुनिराज प्रेम से पुलकित होकर बोले हे राम चन्द्र जी राजा दशरथ जी ने राज्याभिषेक की तैयारी की है।

वे आपको युवराज पद देना चाहते हैं।

“राम करहु सब संजम आजू , जौं बिधि कुसल निबाहै काजू ।

गुरू सिख देइ राय पहिं गयऊ , राम ह्रदयँ अस बिसमउ भयऊ ।।”

इसलिये हे रामजी आज आप उपवास , हवन आदि विधिपूर्वक सब संयम कीजिये , जिससे विधाता कुशलपूर्वक इस काम को निबाह दें ।

गुरूजी शिक्षा देकर राजा दशरथजी के पास चले गये । श्रीरामचन्द्रजी के ह्रदय में इस बात का खेद हुआ कि –

“जनमे एक संग सब भाई , भोजन सयन केलि लरिकाई ।

करनबेध उपबीत बिआहा , संग संग सब भए उछाहा ।।”

हम सब भाई एक ही साथ जन्मे , खाना , सोना , लड़कपन के खेल – कूद , कनछेदन, यज्ञोपवीत और विवाह आदि उत्सव सब साथ-साथ ही हुए ।

“बिमल बंस यहु अनुचित एकू , बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू ।
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई , हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।”

 

पर इस निर्मल वंश मे यही एक अनुचित बात हो रही है कि और सब भाइयों को छोड़कर राज्याभिषेक एक बड़े का ही होता है।

तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु श्रीराम चन्द्र जी का यह सुन्दर प्रेम पूर्ण पछतावा भक्तों के मन की कुटिलता को हरण करे।

उसी समय प्रेम और आनंद में मग्न लक्ष्मण जी आए।
रघुकुल रूपी कुमुद के खिलाने वाले चन्द्रमा श्रीराम चन्द्र जी के प्रिय वचन कह कर उनका सम्मान किया बहुत प्रकार के बाजे बज रहे हैं
नगर के अतिशय आनंद का वर्णन नही हो सकता।

 

सब लोग भरत जी का आगमन मना रहे हैं और कह रहे हैं कि वे भी शीघ्र आएं और राज्याभिषेक का उत्सव देखकर नेत्रों का फल प्राप्त करें ।

स्त्री और पुरुष आपस में कहते हैं कि कल वह शुभ लग्न कितने समय है जब विधाता हमारी अभिलाषा पूरी करेंगे।

https://www.youtube.com/@raginidubey9176

||जय श्री सीता राम  ||

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