भूमिका:-
सुंदरकांड रामायण का एक महत्वपूर्ण कांड है, जो हनुमानजी की वीरता, भक्ति, और साहस का परिचायक है। यह कांड श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी की लंका यात्रा, सीता माता से भेंट, और लंका दहन की अद्भुत कथा को प्रस्तुत करता है। इसे तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में बहुत ही भावपूर्ण ढंग से लिखा है।
सुंदरकांड की कथा
1. हनुमानजी का समुद्र पार करना:
राम भक्त हनुमानजी सुग्रीव के निर्देश पर सीता माता की खोज में लंका जाने के लिए तैयार होते हैं। जंभवानजी उन्हें उनकी अपार शक्ति का स्मरण कराते हैं, जिससे हनुमानजी विशाल रूप धारण कर लेते हैं और छलांग लगाकर समुद्र पार करने लगते हैं।
समुद्र मार्ग में उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है:
मैनाक पर्वत:
हनुमानजी को विश्राम देने के लिए समुद्र मैनाक पर्वत को उठाता है, लेकिन हनुमानजी इसे प्रणाम कर बिना रुके आगे बढ़ जाते हैं।
सुरसा राक्षसी:
देवताओं द्वारा परीक्षा लेने के लिए सुरसा हनुमानजी को रोकती है। वह हनुमानजी को खाने की इच्छा प्रकट करती है, लेकिन हनुमानजी अपनी चतुराई से छोटे आकार में जाकर उनके मुख से बाहर निकल आते हैं।
सिंहिका:
यह एक दैत्यनी थी, जो छाया पकड़कर जीवों को निगल जाती थी। हनुमानजी उसे मारकर आगे बढ़ते हैं। अंततः वे लंका पहुंचते हैं और रात्रि में अपने छोटे रूप में नगर में प्रवेश करते हैं।
2. लंका में प्रवेश और लंकिनी का वध:
लंका नगरी के द्वार पर हनुमानजी को लंकिनी नामक राक्षसी रोकती है। हनुमानजी उसे एक घूंसा मारते हैं जिससे वह गिर जाती है और समझ जाती है कि लंका के विनाश का समय आ गया है। वह हनुमानजी को आशीर्वाद देकर अंदर जाने देती है।
3. माता सीता की खोज:
हनुमानजी अशोक वाटिका में प्रवेश करते हैं, जहां वे सीता माता को अशोक वृक्ष के नीचे दुखी अवस्था में देखते हैं। माता सीता रावण के अत्याचारों से दुखी हैं और श्रीराम की प्रतीक्षा कर रही हैं।
4. हनुमानजी और सीता माता की भेंट ?
हनुमानजी श्रीराम का संदेश देने के लिए एक ब्राह्मण रूप में माता सीता के पास जाते हैं और उनकी पीड़ा सुनते हैं। वे श्रीराम की मुद्रिका (अंगूठी) देकर विश्वास दिलाते हैं कि श्रीराम शीघ्र ही उन्हें मुक्त करेंगे। माता सीता हनुमानजी को अपनी चूड़ामणि देकर श्रीराम को देने के लिए कहती हैं।
5. अशोक वाटिका का विध्वंस :
हनुमानजी माता सीता से विदा लेकर लंका के बल का अनुमान लगाने के लिए अशोक वाटिका में उत्पात मचाते हैं। वे अनेक राक्षसों का वध कर देते हैं और वाटिका को तहस-नहस कर देते हैं।
6. रावण के दरबार में हनुमानजी:
रावण अपने पुत्र अक्षयकुमार को हनुमानजी को पकड़ने के लिए भेजता है, लेकिन हनुमानजी उसे मार देते हैं। इसके बाद रावण इंद्रजीत को भेजता है, जो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमानजी को पकड़ता है। हनुमानजी स्वयं को बांधने देते हैं ताकि वे रावण से भेंट कर सकें।
रावण हनुमानजी को मारने की आज्ञा देता है, लेकिन विभीषण के समझाने पर उनकी पूंछ में आग लगवाकर नगर में घुमाने का आदेश देता है।
7. लंका दहन :
हनुमानजी अपनी पूंछ को लंबी कर लेते हैं और लंका में आग लगा देते हैं। पूरा नगर जलने लगता है, जिससे लंका में हाहाकार मच जाता है। इसके बाद हनुमानजी समुद्र में जाकर अपनी पूंछ की आग बुझाते हैं और श्रीराम के पास लौटने के लिए तैयार होते हैं।
8. श्रीराम को सीता माता का संदेश :
हनुमानजी वापस आते हैं और श्रीराम को माता सीता का संदेश देते हैं। श्रीराम हनुमानजी की वीरता से प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं।
सुंदरकांड का महत्व भक्ति और शक्ति का अद्भुत संगम:
हनुमानजी की भक्ति, बुद्धि, और बल का अद्भुत प्रदर्शन सुंदरकांड में मिलता है। संकट नाशक: सुंदरकांड का पाठ करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और व्यक्ति में आत्मविश्वास आता है। शत्रु नाश और विजय प्राप्ति: इसे पढ़ने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और मनोबल बढ़ता है। आध्यात्मिक उन्नति: यह मन को शांति और आत्मा को बल प्रदान करता है।
श्री हनुमान चालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायण तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
॥जय श्रीराम! जय हनुमान! ॥
निष्कर्ष :
सुंदरकांड हमें हनुमानजी की अपार भक्ति, साहस, और श्रीराम के प्रति समर्पण का पाठ पढ़ाता है। यह अध्याय यह भी दर्शाता है कि सच्चे भक्त को किसी भी कठिनाई से डरने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ईश्वर सदैव उनके साथ होते हैं। इसलिए सुंदरकांड का पाठ श्रद्धा से करने पर जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सफलता प्राप्त होती है।
“जय श्रीराम!” “जय बजरंगबली ”